कभी कभी कुछ लोग कहते हैं कि नाम में क्या रखा है लेकिन तेज बहादुर सिंह की कहानी ऐसी है कि सच में लगता है कि नाम में बहुत कुछ रखा है। 20 वर्ष के इस लड़के ने अपने नाम के अनुरूप अपनी ज़िंदगी की कहानी और भाग्य को बदल दिया है। तेज़ बहादुर के हौसले की मिसाल को समर्पित है। अगर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी हौसला बरकरार है तो यकीन मानिए कि आपने कुछ नहीं खोया। कहानी बताना जितना आसान होता है उससे कहीं अधिक मुश्किल उस कहानी को जीना होता है। जी हाँ, जुझारू व्यक्तित्व के धनी तेज़ बहादुर सिंह ने इस कहानी को जिया है लेकिन कभी भी चुनौतियों के सामने हथियार नहीं डाला। एक छोटे से गांव से अपनी यात्रा शुरू कर केबीसी तक का सफर तय किया। न केवल इस यात्रा को तय किया बल्कि 50 लाख की रकम भी जीती। आइए जानते हैं उनकी ही कहानी विस्तार से।
तेज़ बहादुर बरेली के बहेड़ी क्षेत्र के गांव वसुधरन के निवासी हैं। एक किसान के घर मे जन्म लेने वाले इस बेटे के पास पूंजी के नाम पर केवल उसका अपना हुनर और प्रतिभा थी। उन्हें विरासत में केवल अभाव और गरीबी मिली थी। अभाव का ये आलम था कि घर मिट्टी का टूटा-फूटा और बरसात के दिनों में घर के अंदर पानी जमाव की समस्या। उन्होंने अपने पिता को बिजली कनेक्शन लगाने से मना कर दिया क्योंकि बिजली बिल चुकाने की हैसियत नहीं थी।
केबीसी के स्क्रीन पर अपनी कहानी को देखते हुए तेज़ की आंखों से आंसू निकल गए। उन्होंने अपनी आंसुओं को पोछते हुए अपनी कहानी सुनाई और तब पता चला कि तेज़ के पिताजी एक प्राइवेट ट्यूटर हैं। प्राइवेट ट्यूटर का मतलब तो आप जानते ही होंगे कि मीलों साइकिल चला कर बच्चों को उनके घर पर जाकर पढ़ाना। इतनी मुसीबतों से ये पूरा परिवार जूझ ही रहा था कि कोरोना का कहर और लॉकडाउन वाली स्थिति ने प्राइवेट ट्यूटर की नौकरी भी खत्म कर दी।
तेज़ बहादुर जो कि सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे,घर की इस हालत को देखकर वो समझ गए कि अब अपने पिता की मदद के लिए उन्हें कुछ करना पड़ेगा वो हाँथ पर हाँथ रखकर नहीं बैठ सकते और उन्होंने वही किया। उन्होंने अपने खेत में खेती का कार्य किया, दूसरों के यहाँ मजदूरी की, घर पर बच्चों को पढ़ाया ताकि घर की आमदनी हो सके।और ये सब करके जो भी थोड़ा बहुत वक्त बचता उसमें वो अपनी पढ़ाई किया करते। उन्होंने खुद बताया कि जब इतना काम करने के बाद उनका शरीर मारे दर्द के काम नहीं करता था तो वो इस दर्द से निजात पाने के लिए पेन किलर खा लेते थे ताकि वो अपनी पढ़ाई कर सके।
तेज बहादुर सिंह को एक डिप्लोमा कोर्स के लिए 11000 रुपयों की जरूरत थी, जिसके लिए उनको अपनी माँ के कानों की बालियाँ गिरवी रखनी पड़ी। केबीसी में इस बात को बताते हुए तेज़ कहते हैं कि माँ ने जो बालियां अभी पहन रखी हैं वो उनकी अपनी नहीं बल्कि चाची से मांगी हुई हैं।
तेज़ केबीसी की रकम जीत कर ही संतुष्ट नहीं हो जाते हैं। उनके पास सपनों की एक लंबी लिस्ट है जिसमें से पहला है आईएएस बनना।जीती गई रकम का एक हिस्सा वो अपने आईएएस की पढ़ाई में लगाएंगे। सिर्फ आईएएस बनना ही नही है बल्कि बनने के बाद गांव में इंटर कॉलेज का निर्माण कराना है ताकि तंगी के चलते कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न होने पाए।
केबीसी खेलने के क्रम मे ही अपने गाँव की हालत के बारे में विस्तार से बताते हुए तेज ने यह जानकारी दी कि उनके गाँव में मात्र आठवी तक की पढ़ाई की सुविधा है। आठवीं पास बच्चों की हालत यह है कि वो अंग्रेजी पढ़ नहीं सकते और हिन्दी ठीक से लिख नहीं सकते। गाँव के बच्चे बहुत टैलेंटेड हैं, लेकिन उनके पास सुविधा नहीं हैं अपने सपनों को पूरा करें.
इस वर्ष मई से ही उन्होंने केबीसी में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी। केबीसी के नियमों के अनुसार टीवी पर दिखाए जाने वाले सवालों के जवाब देने होते हैं। सही जवाब देने के बाद उनके पास केबीसी का फोन आया। फोन पर उनसे तीन सवाल पूछे गए और सही जवाब देने के बाद उन्हें केबीसी खेलने के लिए चुन लिया गया।
इस खेल के लिए उनको 6 हजार लोगों में से चुना गया। जिस गांव में टीवी की उपलब्धता नही है वहाँ का एक 20 साल का लड़का मुम्बई पहुँच जाता है। आपको बता दें कि सोनी लिव इन पर उसका ऑडिशन हुआ। फिर वीडियो कॉल के जरिए छह सवाल पूछे गए और परिवार की स्थिति के बारे में पूछा गया। सही जवाब देने के बाद 20-20 सवालों के टेस्ट लिए गए।
इन सारी प्रक्रिया से गुजरने के बाद उन्हें कॉल आया कि उन्हें मुंबई आना है। केबीसी ने ही उनके टिकट और रहने सुविधा कराई। उन्होंने लाइफ लाइन का इस्तेमाल करते हुए लगातार 14 प्रश्नों के सही उत्तर दिए लेकिन एक करोड़ वाले प्रश्न पर उन्होंने रिस्क नहीं लिया क्योंकि इस प्रश के उत्तर को लेकर दुविधा मे थे। इसलिए उन्होंने ऐसी स्थति में अपनी समझदारी का परिचय देते हुए क्विट करना उचित समझा और 50 लाख के मालिक बन गए।
तेज बहादुर ने जिस समझारी के साथ ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सभी सवालों के जवाब दिए अमिताभ बच्चन भी उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सके। इस सफलता से तेज़ और भी ज्यादा जिम्मेदार बन गए हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इस खुशी और सफलता ज़िम्मेदारी लाता है, इसलिए वो इस जीती हुई रकम को इस प्रकार से इन्वेस्ट करना चाहते हैं जिस से वे अपने और अपने छोटे भाई की पढ़ाई पूरी कर सकें, माँ के गिरवी रखे गहने उनको वापस कर सकें और अपने टूटे घर की मरम्मत करा सकें।
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