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150 रुपये की तनख़्वाह से 1000 करोड़ की कंपनी बनाने वाले एक शिक्षक की कहानी

यह कहानी एक शिक्षक की है जिन्होने अपने खर्चों से निपटने के लिए व्यापार का विकल्प चुना और कारोबार जगत में कदम रखा। कदम रखते ही उन्होंने अजंता, ऑरपेट और ओरेवा जैसी नामी ब्रांडों की आधारशिला रखते हुए आज की युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श बन कर खड़े हैं। आईए जानते है इस शख्स की कहानी…

पत्नी ने दिए ताने तो खड़ी कर दी 100 करोड़ की कंपनी

एक दिन इस शख्स की पत्नी ने उन्हें ताने देते हुए कहा कि आप अपने बचे समय में कुछ कारोबार क्यूँ नहीं करते? यदि मैं पुरुष होती तो अपने भाई के साथ मिलकर कोई कारोबार करती और पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गई होती। यह बात इनके दिमाग में खटक गई और फिर उन्होंने कारोबार जगत में कदम रखते हुए हमेशा के लिए अपना नाम बना लिया।

अजंता और ओरेवा जैसे ब्रांडों के निर्माता की कहानी

हम बात कर रहे हैं ऑरपेट, अजंता और ओरेवा जैसे ब्रांडों के निर्माता ओधावजी पटेल की सफलता के बारे में। आज शायद ही कोई घर होगा जहाँ इनके द्वारा बनाया गया सामान नहीं पहुँचा हो। ओधावजी मूल रूप से एक किसान परिवार से हैं।

किसान परिवार से आने के बावजूद उन्होंने विज्ञान में स्नातक करने के बाद बी.एड की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने वी सी स्कूल में विज्ञान और गणित के शिक्षक के रूप में तीस साल तक काम किया। इन्हें 150 रुपये प्रति महीने की तनख्वाह मिलती थी। किसी तरह पूरे परिवार का भरण-पोषण हो पाता था। लेकिन जब उनके बच्चे बड़े हुए तो परिवार पर आर्थिक दबाव बनने शुरू हो गये।

फिर अतिरिक्त आय के लिए उन्होंने कुछ व्यापार शुरू करने के बारे में सोचा। इनकी पत्नी ने भी इस काम के लिए इन्हें काफी प्रोत्साहित किया। काफी सोच-विचार करने के बाद इन्होंने मोरबी में एक कपड़े की दुकान खोली जो साल 1970 तक जारी रहा। इसी दौरान वर्ष 1960 के दौरान पानी की तीव्र कमी थी।

जबकि प्रत्येक गांव में कुएं थे, लेकिन पानी खींचने के लिए एक आवश्यक तेल इंजन की आवश्यकता थी। ओधावजी ने इस क्षेत्र में बिज़नेस संभावना देखी और वसंत इंजीनियरिंग वर्क्स के बैनर तले तेल इंजन बनाने शुरू किये। उन्होंने तेल इंजन का नाम अपनी बेटी के नाम पर ‘जयश्री’ रखा।

1,65,000 की लागत से खड़ी की घड़ी की कारखाने

यह यूनिट पांच साल तक जारी रहा। एक दिन लोगों के एक समूह ने इनके पास ट्रांजिस्टर घड़ी परियोजना से संबंधित आइडिया लेकर आए। ओधावजी को यह आइडिया अच्छा लगा और उन्होंने 1,65,000 की लागत से घड़ी बनाने के कारखाने को एक किराए के घर में 600 रुपये प्रति माह के किराए पर स्थापित किया और अजंता के रूप अपने ब्रांड की आधारशिला रखी।

शुरुआत में कंपनी को भारी नुकसान झेलना पड़ा लेकिन ओधावजी ने हार नहीं मानी और डटे रहे। बाज़ार में लोगों ने उनके उत्पाद में विश्वास दिखाने शुरू कर दिए और देखते-ही-देखते अजंता बाज़ार की सबसे लोकप्रिय और विश्वसनीय घड़ी ब्रांड बन गई। फिर उन्होंने समय के साथ अन्य क्षेत्रों में भी पैर ज़माने के लिए ऑरपेट और ओरेवा जैसी दो नामचीन ब्रांड की पेशकश की। करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत से शुरू हुई कंपनी आज 1000 करोड़ के क्लब में शामिल है।

Supriya Singh

मेरा नाम सुप्रिया सिंह है और मै INDIA NEWS INC में लेखक के पद पर कार्यरत हूँ, मुझे मनोरंजन और राजनीति की खबरों में काफी दिलचस्पी है, लेकिन मै सभी बीट की खबरें लिखने में सक्षम हूँ.

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