16 अगस्त 1971 वो दिन था, जबकि इंदिरा गांधी ने अमेरिका की चेतावनी की परवाह किए बगैर पाकिस्तानी सेनाओं को ना केवल चारों खाने चित्त करके समर्पण के लिए मजबूर किया, बल्कि पाकिस्तान को तोड़कर नया देश बांग्लादेश बना दिया. आज के दिन पाकिस्तान के वो गहरे घाव फिर हरे हो जाते हैं. जिस तरह इंदिरा गांधी ने अमेरिका की आंखों में आंखें डालकर पाकिस्तान के दो टुकड़े किए और नया देश बनवाया, वो शायद ही कोई प्रधानमंत्री कर सकता था या ऐसा करने की उसकी हिम्मत होती.
उन दिनों पाकिस्तान के लोगों के बीच इंदिरा गांधी सबसे चर्चित शख्सियत बन गईं. अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में जब 80 के दशक में सैनिक तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी जाने वाली थी तो पाकिस्तान में ये कहा जा रहा था कि अगर इंदिरा सत्ता में होतीं तो कमांडो भेजकर भुट्टो को छुड़वा लेतीं. बेशक इंदिरा ऐसा नहीं करतीं लेकिन उनके बारे में पाकिस्तानी कम से कम ऐसा ही सोचते थे.
पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान उन्होंने तब दुनिया की दो महाशक्तियों को जिस तरह आमने सामने खड़ा करके सैन्य कार्रवाई की. बांग्लादेश को नया देश बनाया, वैसा करना शायद किसी दूसरे प्रधानमंत्री के वश में नहीं होता.
वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में दमन काफी बढ़ गया. असर भारत और सीमावर्ती भारत के राज्यों पर पड़ने लगा, तब कार्रवाई हरहालत में जरूरी हो गई. पाकिस्तानी शासक जनरल याह्या खान अमेरिका के आंख के तारे थे. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उन्हें पसंद करते थे. तब अमेरिकी प्रशासन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पसंद नहीं करता था. 1971 में जब ऐसा लगने लगा कि भारत पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई कर सकता है, तभी इंदिरा गांधी नवंबर महीने में अमेरिका पहुंचीं.
मुलाकात से पहले की शाम राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की बातचीत में इंदिरा के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया. निक्सन ने उन्हें “ओल्ड विच” कहा तो किसिंजर ने भारतीयों को “बास्टर्ड”. अगले दिन की मुलाकात में इंदिरा को कड़ी चेतावनी दी जाने वाली थी.
मुलाकात की शुरुआत ही गड़बड़ रही. निक्सन ने हावभाव से जैसी शुरुआत की, उसका वैसा ही जवाब इंदिरा से मिला. इंदिरा ने पूरी मुलाकात में कुछ ऐसा ठंडा रुख अख्तियार कर लिया, मानो उन्हें निक्सन की कोई परवाह ही नहीं हो. निक्सन ने चेतावनी दी, ”अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे. भारत को पछताना होगा.”
किसी और देश के लिए ये चेतावनी पसीने पसीने कर देने वाली बात होती, लेकिन इंदिरा पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उन्होंने निक्सन के साथ वैसा ही बर्ताव किया, जैसा कोई समान पद वाला करता है.
इंदिरा न केवल गर्वीली थीं बल्कि सम्मान से कोई समझौता नहीं करने वाली. अमेरिका दौरे से पहले सितंबर में वह सोवियत संघ भी गई थीं. भारत को सैन्य आपूर्ति के साथ मास्को के राजनीतिक समर्थन की सख्त जरूरत थी. जब वह पहुंचीं तो पहले दिन प्रधानमंत्री किशीगन से मुलाकात कराई गई. उन्होंने साफ जता दिया कि वह जो बात करने आईं हैं वह देश के असली राष्ट्रप्रमुख ब्रेझनेव से ही करेंगी. अगले दिन ब्रेझनेव से बातचीत हुई. वर्ष 1971 में इंदिरा ने अमेरिका और सोवियत संघ के लिए जैसे पांसे फेंके, वो बेहद नपी-तुली और समझदारी वाली विदेशनीति थी.
अमेरिका से लौटते हुए इंदिरा जी पक्का कर चुकी थीं कि अब करना क्या है. तीन दिन बाद ही दिसंबर के पहले हफ्ते में भारतीय फौजों ने पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई शुरू कर दी. पाकिस्तानी सेनाओं के पैर उखड़ने लगे. खबर वाशिंगटन पहुंची तो निक्सन बिलबिला गए. उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि उनकी चेतावनी के बाद भी भारत ऐसा करेगा.
निक्सन ने चीन से संपर्क साधा कि क्या वह भारत के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, चीन तैयार नहीं हुआ. अब सीधे इंदिरा पर संघर्ष विराम का दबाव डाला गया. दो-टूक जवाब मिला-नहीं ऐसा नहीं हो सकता. अमेरिका ने अपने सातवें बेडे को हिन्द महासागर में पहुंचने का आदेश दिया. तो सोवियत संघ तुरंत सामने आकर खड़ा हो गया. भारत ने संघर्ष विराम तो किया लेकिन 17 दिसंबर को तब जबकि पाकिस्तान ने हार मानने के बाद समर्पण कर दिया. इसके बाद भारतीय फौजों ने ढाका में झंड़ा फहराया.
ये ऐसा समय था जब भारतीय फौजें चाहतीं तो पश्चिम में पाकिस्तानी सीमा के अंदर तक जाकर उसके इलाके को हड़प सकती थीं, लेकिन इंदिरा ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने मास्को के जरिए वाशिंगटन को संदेश भिजवाया कि पाकिस्तानी सीमाओं को हड़पने का उनका कोई इरादा नहीं है. उन्हें जो करना था, वो उन्होंने कर दिया.
बांग्लादेश को इंदिरा के ही इशारे पर सबसे पहले भूटान ने मान्यता दे दी. फिर ये काम करने वाला भारत दूसरा देश बना. बांग्लादेश बनने के एक महीने के अंदर ही अंदर संयुक्त राष्ट्र के ज्यादातर देशों ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी. इस जीत और सैन्य अभियान ने यकायक इंदिरा और भारत की छवि को पूरी दुनिया में बदलकर रख दिया. इंदिरा वाकई दुर्गा और लौह महिला के तौर पर दुनिया के सामने आईं.
निक्सन कभी इस घाव को भूल नहीं पाए. याहया खान के हाथ से पाकिस्तान की सत्ता चली गई. उन्हें जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता सौंपनी पड़ी. भुट्टो ने सत्ता में आते ही उनसे सारे अधिकार और पद छीनकर नजरबंद कर दिया.
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