मुंबई: कोरोना वैक्सीन अभी भारत और मुंबई में आई भी नहीं है लेकिन उसके पहले ही यह विवादों में आ चुकी है. कोरोना वैक्सीन को लेकर मुस्लिम समुदाय में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. मुंबई की राजा एकेडमी ने एक फतवा जारी करते हुए कहा है कि जब तक हमारे मुफ्ती दवा की जांच न कर लें, तब तक मुसलमान इस दवा को लगवाने के लिए आगे न आएं.

हमारी मंजूरी के बाद ही मुस्लिम कोरोना वैक्सीन लगवाएं

मौलाना सईद नूरी ने कहा,’ये मालूम हुआ है कि चीन ने जो वैक्सीन बनाया है, उसमें सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है. ऐसे में जो भी वैक्सीन भारत आती है, उसे हमारे मुफ्ती और डॉक्टर अपने हिसाब से चेक करेंगे. उनकी इजाज़त मिलने के बाद ही भारत के मुस्लिम उस वैक्सीन का इस्तेमाल करें वर्ना न करे.’

मौलाना-मुफ्तियों में वैक्सीन को लेकर असमंजस

दुनियाभर के मौलाना-मुफ्तियों में इस बात को लेकर असमंजसता है कि क्या यह दवा हलाल विधि से बनी है या हराम तरीके से. यदि यह दवा सुअर के मांस से बनी है तो क्या कुरान के तहत इसे लगवाना जायज होगा या नहीं? इस बहस पर इस्लामिक स्कॉलर अतीकुर्रहमान रहमान का कहना है कि,

‘अल्ला ताला ने जान बचाने के लिए हराम की चीजों के इस्तेमाल की इजाजत दी है. इनका मानना है, ‘मुस्लिम धर्म गुरूओं का काम समाज को जागृत करना है. इसलिए इस काम में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए.’

वैक्सीन को पार्टी या लीडर के चश्मे से देखना गलत’

वहीं लखनऊ के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली  ने अपने समुदाय के लोगों से किसी अफवाह में आने के बजाए आराम से वैक्सीन लगवाने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि जान की हिफाजत सबसे बड़ी चीज है इसलिए सभी सामान्य तरीके से वैक्सीन लगवाएं. वैक्सीन को पार्टी या लीडर के चश्मे से देखना गलत है.

यूएई फतवा काउंसिल ने वैक्सीन को बताया जायज

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के शीर्ष इस्लामी निकाय ‘यूएई फतवा काउंसिल’ ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क (सुअर के मांस) के जिलेटिन का इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिये जायज करार दिया है. काउंसिल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है, क्योंकि पहली प्राथमिकता ‘मनुष्य का जीवन बचाना है

टीकों के निर्माण में पोर्क जिलेटिन

काउंसिल ने कहा कि इस मामले में पोर्क-जिलेटिन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना है न कि भोजन के तौर पर. ऐसे में मुसलमान कोरोना वैक्सीन को आराम से लगवा सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक टीकों में सामान्य तौर पर पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है और इसी वजह से कोरोना वैक्सीन को लेकर भी उन मुस्लिमों की चिंता बढ़ गई है, जो इस्लामी कानून के तहत पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को ‘हराम’ मानते हैं.

मेडिकल एक्सपर्ट्स ने खारिज किया दावा

मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब किसी पशु से एंटीबाड़ी लेकर वैक्सीन बनाई जाती है तो उसे वेक्टर वैक्सीन कहा जाता है. लेकिन कोरोना  के मामले में ऐसा कुछ भी नही है. स्वदेशी कोरोना वैक्सीन भारत बायोटेक के साथ रिसर्च करने वाले शोधकर्ता डॉक्टर चन्द्रशेखर गिल्लूरकर का कहना है कि सुअर और कोरोना वैक्सीन का कोई संबंध नही है.

Supriya Singh

मेरा नाम सुप्रिया सिंह है और मै INDIA NEWS INC में लेखक के पद पर कार्यरत हूँ, मुझे मनोरंजन...